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माँ सिद्धिदात्री
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वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्द्ध कृत शेखराम् ।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धिदात्री यशस्विनीम् ।।
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मार्कंडेय पुराण में अनिमा ,महिमा,गरिमा,लघिमा,प्राप्ति ,प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व आठ सिद्धियां बताई गई है। ब्रह्मवैवर्तपुराण पुराण में अठारह सिद्धियों का वर्णन किया गया है । इनमें आठ सिद्धियों के अतिरिक्त सर्वकामावसायिता , सर्वज्ञत्व,दूरश्रवण, प्रकायप्रवेशन , वाकसिद्धि कल्पवृक्त्व,सृष्टि , संहारकरणसामर्ध्य , अमरत्व , सर्वन्यायकत्व , भावना और सिद्धि । ये सभी सिद्धियां मां सिद्धिदात्री देवी के अधीन है ।
आदिशक्ति जगदीश्वरी माँ दुर्गा का नवां स्वरूप लक्ष्मी जी का है । ये ही नारायण की भार्या हैं तथा समस्त सिद्धियों को देने वाली हैं इसलिए ये सिद्धिदात्री दुर्गा के नाम से विख्यात हैं । ये ही अखिल जगत की संचालिका ,पोषिका और महामाया हैं । इनसे विरत कुछ भी नहीं है । ये ही सब की धुरी हैं । ये ही समस्त जीवों में किसी न किसी रूप में विद्यमान और भरणसर्वभूषिता हैं । ये साक्षात् श्रीनारायण की महामाया हैं , शिव की अर्धनारीश्वर और ब्रह्मा की सृष्टि हैं । भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था । चतुर्भुजी माँ के दो हाथों में गदा और शंख है । एक हाथ में कमलपुष्प और हाथ वरमुद्रा में है । ये कमलासन्न हैं । नवरात्रों की ये अधिष्ठात्री देवी हैं । माँ सिद्धिदात्री दैहिक , दैविक और भौतिक तापों को दूर करती हैं । इनके स्मरण , ध्यान और पूजा से ये प्रसन्न हो कर भक्तों को अनेक सिद्धियां प्रदान करती हैं । नवमी तिथि को यज्ञ और कन्याओं का पूजन कर भोग लगाया जाता है । इसके बाद देवी मंडप से कलश उठाए जाते हैं और उसका जल घर में छिड़का जाता है तथा देवी से प्रार्थना करते हैं कि आपकी कृपा हमेशा हमसब पर बनी रहे । हे मातेश्वरी आप सभी अपने स्थान को प्रस्थान करें ।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी ।।
या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै -नमस्तस्यै -नमस्तस्यै नमो नमः ।।
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